गौ वत्स द्वादशी और बछ बारस | Bach Baras Vrat Katha Vidhi aur Mahatmya
गौवत्सद्वादशी (मदनरत्नान्तर्गत भविष्योत्तरपुराण) | Govatsa Dwadashi –
गोवत्स द्वादशी (Govatsa Dwadashi ) का व्रत कार्तिक कृष्ण द्वादशी (Kartik Krishan Dwadashi) के दिन मनाया जाता है। इसमें प्रदोष व्यापिनी तिथि ली जाती है। यदि वह 2 दिन हो तो ‘वत्सपूजा वटश्चैव कर्तव्यौ प्रथमेऽहनि’ के अनुसार पहले दिन व्रत करना चाहिए।
गोवत्स द्वादशी (Govatsa Dwadashi) को बछ बारस (Bach Baras) त्योहार के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत में बछ यानी बछड़े और उनकी माता गाय (Gau Mata) की पूजा होती है। गुजरात में इस त्यौहार को बाघ बरस (Vagh Baras) के नाम से मनाया जाता है। गोवत्स द्वादशी (Govatsa Dwadashi) एकादशी (Ekadshi) के अगले दिन मनाई जाती है. इस दिन गाय माता और उसके बछड़े की पूजा करने का नियम है। इस पूजा को सुबह के समय गोधूलि बेला में किया जाता है, जिस वक्त सूर्य उदय होता है। गोवत्स पूजा (Govatsa Puja) के दिन सभी महिलाएं व्रत रखती हैं। गोवत्स पूजा खासतौर से पुत्र प्राप्ति के लिए की जाती है। यह व्रत महिलाओं के लिए बहुत ही मंगलकारी है। गोवत्स द्वादशी (Bach Baras) का व्रत महिलाएं पुत्र की लंबी उम्र और उनकी मंगल कामना के लिए करती हैं।
व्रत का विधि-विधान (Vrat ka Vidhi-Vidhan)
- गोवत्स द्वादशी (Govatsa Dwadashi) के दिन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए पृथ्वी पर सोना चाहिए।
- इस दिन पूरे मन से भगवान विष्णु (God Vishnu) और भगवान शिव (God Shiv) की पूजा अर्चना करनी चाहिए।
- इस बात का स्मरण रखें कि उस दिन के भोजन के पदार्थों में गाय का दूध, घी, दही, छाछ और खीर तथा तेल के पके हुए भुजिया पकौड़ी या अन्य कोई पदार्थ न हों।
- जो भी व्यक्ति पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ गोवत्स द्वादशी (Govatsa Dwadashi) का व्रत करता है उसे सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है और उसके जीवन में कभी भी कोई कमी नहीं होती है।
- गोवत्स द्वादशी (Govatsa Dwadashi) के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर किसी पवित्र नदी या तालाब में स्नान करने के बाद साफ-सुथरे वस्त्र धारण करने चाहिए।
- इसके बाद पूरे सच्चे हृदय से व्रत का संकल्प लेना चाहिए। गोवत्स द्वादशी (Govatsa Dwadashi) के व्रत में सिर्फ एक समय भोजन करने का नियम है।
- इस व्रत में भैंस के दूध और उससे बनी चीजों का सेवन नहीं किया जाता है।
- साथ ही इसमें छूरी चाकू का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- इस दिन गाय और उसके बछड़े को किसी नदी या सरोवर में स्नान कराने के बाद नए वस्त्र पहनाए जाते हैं।
- गाय और उसके बछड़े के गले में फूलों की माला पहनाने के बाद चंदन से तिलक करते हैं।
- इसके बाद तांबे के बर्तन में सुगंध, अक्षत, तिल,जल और फूलों को मिलाकर नीचे बताए गए मंत्र का उच्चारण करते हुए गाय की पूजा करते हैं।
क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते| सर्वदेवमयेमातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:॥
- इस मंत्र को पढ़ने के बाद गाय को उड़द की दाल से बना भोजन खिलाएं और नीचे दिए गए मंत्र को पढ़ते हुए गौमाता (Gau Mata) से प्रार्थना करें।
सुरभि त्वम् जगन्मातर्देवी विष्णुपदे स्थिता सर्वदेवमये ग्रासंमय दत्तमिमं ग्रस ततः सर्वमये देवी सरदेवैरलङ्कृते मातमरमाभिलाषितम सफलम कुरु नंदिनी
- इनके साथ ही अपने कुल देवी देवता और श्रीकृष्ण (Shree Krishna) की पूजा करनी चाहिए।
- इस मंत्र का जाप करके पूजा करने के बाद गोवत्स (Govatsa) की कथा सुनी जाती है।
- पूरा दिन व्रत करने के बाद रात के समय अपने इष्ट देव और गौ माता की आरती करने के बाद भोजन किया जाता है।
गौवत्सद्वादशी की व्रत कथा | Govatsa Dwadashi (Bach Baras) ki Vrat Katha
प्राचीन समय में भारत में सुवर्णपुर नगर में देव दानी राजा राज्य करता था। उसके सवत्स एक गाय और भैंस थी। राजा की दो रानियाँ थी। एक का नाम गीता तो दूसरी का नाम सीता था। सीता भैंस से सहेली सा प्यार करती थी। तो गीता गाय व बछड़े से सहेली सा प्रेम करती थी। एक दिन भैंस सीता से कहती है कि गीता रानी गाय व बछड़ा होने से मुझसे ईर्ष्या करती है। सीता ने सब सुनकर कहा कि कोई बात नहीं मैं सब ठीक कर दूंगी। सीता रानी ने उसी दिन गाय के बछड़े को काटकर गेहूँ के ढ़ेर में गाड़ दिया। किसी को भी इस बात का पता नहीं चल पाया।
राजा जब भोजन करने बैठा तब मांस की वर्षा होने लगी। महल में चारों ओर मांस तथा खून दिखाई देने लगा। थाली में रखा सारा भोजन मलमूत्र में बदल गया। यह सब देखकर राजा के होश उड़ गये और उन्हें अहसास हुआ की उनके राज्य में कोई बहुत बड़ा पाप हुआ है। जिसकी सजा पुरे राज्य को मिलने वाली है।
ईश्वर से विनती करने पर राजा को एक आकाशवाणी सुनाई दी – कि हे राजन! तुम्हारी रानी सीता ने गाय के बछड़े को मारकर गेहूँ के ढेर में छिपा दिया है। जिससे यह संकट पुरे राज्य में आया है। इस संकट से उभरने के लिए कल गोवत्स द्वादशी (Govatsa Dwadashi) पर तुम्हे गाय तथा बछडे़ की पूजा करनी है। कल गोवत्स द्वादशी (Govatsa Dwadashi) है इसलिए भैंस को बाहर कर गाय व बछड़े की पूजा करो। इस दिन व्रत रखकर एक ही समय खाना है जिसमे गेहूं का प्रयोग नही करना ना ही चाकू काम में लेना है। कटे हुए फल और दूध का सेवन नहीं करना इससे तुम्हारे पाप नष्ट हो जाएंगे और बछड़ा भी जीवित हो जाएगा।
संध्या समय में गाय के घर आने पर राजा ने उसकी पूजा की और जैसे ही बछड़े को याद किया वह गेहूँ के ढेर से बाहर निकलकर गाय के पास आकर खड़ा हो गया। यह सब देख राजा अत्यंत प्रसन्न हुआ और उसने राज्य में सभी को गोवत्स द्वादशी (Govatsa Dwadashi) का व्रत करने का आदेश दिया।
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