Gau ka mulyankan

प्राचीन काल की बात है च्यवन (Mahrishi Chyavan) नामक एक  महर्षि थे l वे बड़ी तपस्वी  थे l  एक बार उन्होंने एक महान व्रत का आश्रय लेकर  जल के भीतर रहने का संकल्प किया l महर्षि च्यवन (Mahrishi Chyavan) अभिमान, क्रोध, हर्ष और शोक का त्याग करके महान दृढ़तापूर्वक पालन करते हुए एक बार 12 वर्ष तक जल  के अंदर रहे l महात्मा महात्मा के स्वभाव व तपश्चर्या से प्रभावित होकर सभी जलचर प्राणी उनके मित्र बन गए l जलचर प्राणियों को उनसे कोई भय नहीं लगता था l एक बार महर्षि च्यवन (Mahrishi Chyavan) अत्यंत श्रद्धा भाव से उन्मत्त होकर गंगा यमुना के संगम  में जल के भीतर  प्रविष्ट हुए l कभी जल समाधि लगा लेते कभी निश्चल होकर जल के ऊपर बैठ जाते l इस प्रकार व्रतानुष्ठान करते-करते बहुत समय व्यतीत हो गया l  

एक दिन कुछ मल्लाह मछलियों को पकड़ने की इच्छा से हाथ में जाल लिए उस स्थान पर आए जहां महर्षि च्यवन (Mahrishi Chyavan) जल समाधि लगाए हुए थे l मल्लाहों ने मछली पकड़ने के उद्देश्य से जाल को पानी मैं फैलाया l संयोग से जाल में मछलियों के साथ महर्षि च्यवन (Mahrishi Chyavan) भी फस गए l मल्लाह जाल खींचने लगे तो उन्हें अधिक बल लगाना पड़ा l इस पर मल्लाह समझे कि आज कोई बहुत बड़ी मछली जाल में फंस गई है l उन्होंने पूरे जोर से जाल को खींचा, तब उसमें जल -जंतुओं से घिरे हुए महर्षि च्यवन (Mahrishi Chyavan) भी खिंच आये l  

जाल में महर्षि को देखकर महल्ला डर गए l हाथ जोड़कर उनसे क्षमा मांगने लगे और उनके चरणों में सिर रखकर प्रणाम करने लगे l  पानी से बाहर निकल जाने पर बहुत-से मत्स्य तड़पने और मरने लगे l इस प्रकार मत्स्यों का बुरा हाल देखकर ऋषि का हृदय द्रवित हो उठा l 

उन्होंने मल्लाहों  से कहा, ‘देखो, ये मत्स्य जीवित रहेंगे, तो मैं भी रहूंगा, अन्यथा  इनके साथ ही मर जाऊंगा l मैं इन्हें त्याग नहीं सकता l यह मेरे सह वासी रहे हैं,  मैं बहुत दिनों तक इनके साथ जल में रह चुका हूं l  मैं भी इनके साथ अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दूंगा ’

मुनि की बात सुनकर मल्लाह डर गए और उन्होंने कांपते हुए जाकर सारा समाचार महाराज नहुष (Raja Nahush) को सुनाया।

मुनि की सङ्कटमय स्थिति जानकर राजा नहुष (Raja Nahush) अपने मंत्री और पुरोहित को साथ लेकर तुरंत वहां गए l पवित्र भाव से हाथ जोड़कर उन्होंने  मुनि को अपना परिचय दिया और उनकी विधिवत् पूजा करके कहा-  ‘द्दिजोत्तम ! आज्ञा कीजिए, मैं आपका कौन- सा प्रिय कार्य करूँ ?’

महर्षि च्यवन (Mahrishi Chyavan) ने कहा- ‘राजन् ! इन मल्लाहोंने आज बड़ा भारी परीश्रम किया है। अतः आप इनको मेरा और मछलियों का मूल्य चुका दीजिए l’ राजा नहुष (Raja Nahush) ने सुनते ही मल्लाहों  को एक हजार स्वर्णमुद्रा देने के लिए पुरोहित जी से कहा l 

 

इस पर महर्षि च्यवन (Mahrishi Chyavan) बोले- ‘ 1000 स्वर्ण मुद्रा मेरा उचित मूल्य नहीं हैं। आप सोच कर इन्हें उचित मूल्य दीजिए।’

इस पर राजा ने एक लाख स्वर्ण मुद्रा  से बढ़ते हुए 10000000, अपना आधा राज्य और अंत में समूचा राज्य देने की बात कह दी; परंतु च्यवन ऋषि (Mahrishi Chyavan) राजी नहीं हुए l उन्होंने कहा-  ‘आपका आधा या समूचा राज्य मेरा उचित मूल्य नहीं है l आप ऋषियों के साथ विचार कीजिए और फिर जो मेरे योग्य हो, वही मूल्य  दीजिये’।

 

यह सुनकर राजा  नहुष (Raja Nahush) अत्यंत दुखी हो गए l  उन्होंने कुछ सूझ नहीं रहा था l  वे अपने मंत्री और पुरोहित से सलाह करने लगे l

उस समय समय फल- मूल का सेवन करने वाले एक वनवासी मुनि राजा नहुष (Raja Nahush) के समीप में आए और राजा से कहने लगे- “ राजन !  आप दुखी ना होइए,  मैं महर्षि को संतुष्ट कर दूंगा और इनका उचित मूल्य भी आपको बता दूंगा l  आप मेरी बात को बड़े ध्यान से सुनिए l  मैंने कभी हाथ परिहास में भी असत्य भाषण नहीं किया,  हमेशा मैं सत्य ही बोलता हूं,  अंत:  आप मेरी बातों पर शंका मत कीजिएगा l”

 

राजा नहुष (Raja Nahush) ने कहा –  हे प्रभो ! मैं बड़े संकट में हूं l  मेरे कारण एक महर्षि अपने प्राणों का उत्सर्ग करने को उद्यत है l यदि इनका उचित मूल्य आप बता दें तो यह आपका  बड़ा अनुग्रह होगा l  इस भयंकर कष्ट से मुझे,  मेरे राज्य तथा मेरे कुल की रक्षा कीजिए l

 

नहुष (Raja Nahush) की बात सुनकर मुनि कहने लगे- राजन ! ब्राह्मण और गौएँ एक ही कुल की हैं। ब्राह्मण मंत्र- रूप हैं तो गौएँ हविष्य-रूप l ब्राह्मणों तथा गायों का मूल्य नहीं लगाया जा सकता l  इसलिए आप इनकी कीमत में एक गौ प्रदान कीजिए l

 

अनर्घेया महाराज द्विजा वर्णेषु चोत्तमा:।

 

गावश्च पुरूषव्याघ्र गौर्मूल्यं परकल्प्यताम्:।।

 

मुनि की बात सुनकर राजा को बड़ी प्रसन्नता हुई और उन्होंने उत्तम व्रत का पालन करने वाले महर्षि च्यवन के पास जाकर कहा- ‘महर्षे ! मैंने एक गौ देकर आपको खरीद लिया है l अब आप उठने की कृपा कीजिए l मैंने आपका यही उचित मूल्य समझा है।’

 

राजा की बात सुनकर च्यवन (Mahrishi Chyavan) बोले- राजन !  आपने उचित मूल्य देकर मुझे  खरीदा है l  निश्चित ही इस  संसार में गायों के समान कोई दूसरा धन नहीं है l  गायों के नाम और गुणों का कीर्तन कथा श्रवण करना,  गायों का दान देना और उनका दर्शन-  इनकी शास्त्रों में बड़ी प्रशंसा की गई है l  यह सब कार्य संपूर्ण कार्य को दूर करके परम कल्याण की प्राप्ति कराने वाले हैं l गौएँ लक्ष्मी प्रदान करती है,  उनमें पाप का लेश मात्र नहीं है l गौएँ ही मनुष्य को सर्वदा अन्न और देवताओं को हविष्य देने वाली है l स्वाहा और वषट्कार  सदा गौओं में हि प्रतिष्ठित होते हैं। गौएँ ही यज्ञ का संचालनकरने वाले तथा उसका मुख्य l  वे विकार रहित  अमृत धारा करती है और दुहने पर अमृत ही देती है l  वे अमृत  आधारभूता  है l  सारा संसार उनके सामने नतमस्तक होता है l  गायों का समुदाय जहा बैठकर निर्भरता पूर्वक सांस लेता है,  उस स्थान को शोभा बढ़ा देता है और वहां के सारे पापों को खींच लेता है l गौएँ स्वर्ग की सीढ़ी है l गौएँ स्वर्ग में भी पूजी जाती है l गौएँ  समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली दे  देवियां है l  उनसे बढ़कर दूसरा कोई नहीं है और ना उनके माहात्मय का कोई वर्णन ही कर सकता है l

 

तदनन्तर मल्लाहों ने मुनि से उनकी दी हुई गौ को स्वीकार करने के लिए प्रार्थना की  मुनि ने उनकी दी हुई गाय लेकर कहा- ‘मल्लाहों !  इस गोदान के प्रभाव से तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो गये l अब तुम इन जल में उत्पन्न हुई मछलियों के साथ स्वर्ग जाओ।’

देखते-ही-देखते महर्षि च्यवन (Mahrishi Chyavan) के आशीर्वाद से वे मल्लाह तुरंत मछलियों के साथ स्वर्ग चले गए। उनको इस प्रकार स्वर्ग को जाते देख  राजा नहुष (Raja Nahush) को बड़ा आश्चर्य हुआ l तदनन्तर राजा नहुष ने महर्षि की गो जाति की पूजा की और उनसे धर्म में स्थित रहने का आशीर्वाद दिया। तत्पश्चात राजा अपने नगर को लौट आए और महर्षि अपने आश्रम को चले गए।

 

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